1.1. पाषाण युग स्थल
i. परुापाषाण |
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ii. मध्य पाषाण काल |
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iii. नवपाषाण काल |
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iv. ताम्र पाषाण काल |
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1.2. महाजनपद
16 महाजनपद |
1. कासी 2. कम्बोज 3. कोसल 4. गांधार 5. अंगा 6. अवंति 7. मगध 8. असक 9. वज्जि (व्रिजी) 10. सुरसेन (मथुरा) 11. मल्ल 12. मत्स्य 13. चेदि 14. पंचला 15. वत्स (वामा) 16. कुरु |
तीन महाजनपद बिहार में मगध, अंग और वज्जी से संबंधित थे|
मगध साम्राज्य |
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अंग साम्राज्य (Anga Kingdom) |
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वज्जी साम्राज्य (Vajji Kingdom) |
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1.3. मगध साम्राज्य के तहत पूर्व-मौर्य राजवंश
बृहद्रथ वंश |
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हर्यंक राजवंश – 544 ई.पू. से 492 ई.पू.
बिम्बिसार |
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अजातशत्रु |
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उदयिन |
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शिशुनाग वंश – 412 ई.पू. से 344 ई.पू.
शिशुनाग |
100 साल की प्रतिद्वंद्विता को समाप्त कर दिया गया। |
** कालाशोक |
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नंद राजवंश – 344 ई.पू. से 321 ई.पू.
महापद्मनंद |
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मौर्य राजवंश – 321 ई.पू. से 184 ई.पू.
चंद्रगुप्त मौर्य |
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बिन्दुसार (Bindusara) |
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** अशोक |
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शुंग वंश (187 ईसा पूर्व से 75 ईसा पूर्व)
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गुप्त साम्राज्य (320 ई–550 ई)
गुप्त साम्राज्य |
** श्रीगुप्त गुप्त वंश के संस्थापक थे। |
चंद्रगुप्त प्रथम |
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समुद्रगुप्त |
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चंद्रगुप्त द्वितीय – विक्रमादित्य |
1. ** कालिदास 2. शंकु 3. अमरसिंह 4. वेतालभट्ट 5. वररुचि 6. पनाका 7. वराहमीरा 8. ** धनवंतरी 9. घटकरपारा
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कुमारगुप्त/ गोविंद गुप्त |
** नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना |
स्कन्दगुप्त |
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** महत्वपूर्ण तथ्य |
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1.4. बौद्ध धर्म और बिहार
बिहार बौद्ध धर्म का जन्म स्थान है
यह एक ऐसा स्थान था जहाँ बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया, अपना पहला धर्मोपदेश दिया, जिसे “धर्म चक्र” कहा गया, और उन्होंने “परिनिर्वाण” की घोषणा की।
1.4.i. बौद्ध साहित्य |
त्रिपिटक को अंततः चौथे बौद्ध परिषद के दौरान संकलित किया गया था और उन्हें पाली में लिखा गया था। |
1. विनया पिटक: |
इसमें भिक्षुओं और ननों के नियम और कानून शामिल हैं। |
2. सुत्त पिटक |
यह बुद्ध के लघु उपदेशों का संग्रह है जिसे आगे 5 निकेतों में विभाजित किया गया है। |
3. अभिधम्म पिटक: |
इसमें बुद्ध की मेटा-भौतिकी शामिल है। यानी धार्मिक प्रवचन |
4. जातक: |
यह बुद्ध के पिछले जन्म से संबंधित लघु कथाओं का संग्रह है। |
5. मिलिंदपन्हो: |
इसमें ग्रीक राजा मेनेंडर और बौद्ध संत नागसेन के बीच संवादी संवाद हैं |
अष्टांगिक मार्ग |
1. सम्यक् दृष्टि 2. सम्यक् संकल्प 3. सम्यक् वाक 4. सम्यक् कर्मांत 5. सम्यक् आजीव 6. सम्यक् व्यायाम 7. सम्यक् स्मृति 8. सम्यक् समाधि |
1.4.ii. बौद्ध संगतिया
प्रथम संगीति |
1. राजगृह के सप्तपूर्णि गुफा में 483 ई.पू. में 2. ** “अजातशत्रु” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष भिक्षु “महाकस्सप उपलि” थे| |
परिणाम |
1. इस संगीति के दौरान बुद्ध की शिक्षाओं को (सुत्तपिटक) और शिष्यों के लिए निर्धारित नियमों को (विनयपिटक) में संरक्षित किया गया था। 2. बुद्ध के शिष्य “आनन्द” ने सुत्तपिटक का और “उपालि” ने विनयपिटक का संकलन किया था| |
द्वित्तीय बौद्ध संगीति |
1. वैशाली में 383 ई.पू. में 2. शिशुनाग वंश के शासक “कालाशोक” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष सब्ब्कामि थे| |
परिणाम |
विनयपिटक और अनुशासन के नियमों में विवाद के कारण इस संगीति के दौरान बौद्ध धर्म “स्थाविर” और “महासंघिक” नामक दो गुटों में बंट गया| |
** तृतीय बौद्ध संगीति |
1. पाटलिपुत्र में 250 ई.पू. में 2. “अशोक” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष “मोग्गलिपुत्त तिस्स” थे| |
परिणाम |
इस संगीति के दौरान अभिधम्म पिटक का संकलन किया गया तथा संघभेद रोकने के लिये कुछ कठोर नियमों का निर्माण किया गया| इस प्रकार अब बौद्ध की शिक्षाओं को तीन ग्रंथों में संकलित किया गया जिन्हें “त्रिपिटक” भी कहा जाता है| |
चतुर्थ बौद्ध संगीति |
1. कुण्डलवन, कश्मीर में 72 ईस्वी में 2. कुषाण शासक “कनिष्क” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष “वसुमित्र” और उपाध्यक्ष “अश्वघोष” थे| |
** याद करने वाले तथ्य
1. ** गौतम बुद्ध जन्म 563 ई॰ पू॰ में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल तराई में अवस्थित लुंबिनी में हुआ था । 2. ** आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरू थे. 3. बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ. 4.** बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है. 5. बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पालि भाषा में दिए. 6.** बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रीवस्ती में दिए. 7. बुद्ध की मृत्यु 80 साल (483 ई. पू.) की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई. जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है. 8.** बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है. 9. प्रविष्ठ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं- 1. बुद्ध 2. धम्म 3. संघ 10. इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे: 1. बिंबसार 2. प्रसेनजित 3. उदयन 11. चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया: 1. हीनयान 2. महायान 12.** बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया. 13. सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था. लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति मथुरा कला के अंतर्गत बनी थी. |
1.5. जैन धर्म और बिहार
** याद करने वाले तथ्य 1.दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है 2. ** जैन धर्म के संस्थापक और पहले तीर्थंकर थे- ऋषभदेव. 3. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे- पार्श्वनाथ
4.** महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं. 5. महावीर का जन्म 540 ई. पू. पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था. 6. इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थीं. 7. महावीर की पत्नी का नाम यशोदा और पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था. 8. ** महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था. 9. महावीर का साधना काल 12 साल 6 महीने और 15 दिन का रहा. इस अवधि में भगवान ने तप, संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंध (बंधनहीन) कहलाए. 10. महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने. 11. जैन धर्म दो भागों में विभाजित है-
12. ** भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर और स्थूलभद्र के शिष्य श्वेतांबर कहलाए. 13. जैन धर्म के त्रिरत्न हैं-
14. जैन धर्म में ईश्वर नहीं आत्मा की मान्यता है. 15. महावीर पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास रखते थे. 16. ** जैन धर्म को मानने वाले राजा थे-
17. मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था| 18. जैन तीर्थंकरों की जीवनी ** कल्पसुत्र में है 19. 72 साल में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के ** पावापुरी में हुई थी 20. **अनेकान्तवाद जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और मूलभूत सिद्धान्तों में से एक है। इसके अनुसार प्रत्येक प्रकार का ज्ञान (मति, श्रुति , अवधि, मनः पर्याय) 7 स्वरूप में व्यक्त किया जा सकता है जो इस प्रकार है- (1) है (2) नहीं है (3) है और नही है (4) कहा नहीं जा सकता (5) है किंतु कहा नहीं जा सकता (6) नहीं है और कहा जा सकता (7) नहीं है और कहा नहीं जा सकता अनेकान्वाद को ‘सप्तभंगी ज्ञान‘ भी कहा जा सकता है। |